जानें क्‍या है बेकाबू सनक यानी ऑब्‍सेसिव कम्‍पल्सिव डिस्‍आर्डर

जानें क्‍या है बेकाबू सनक यानी ऑब्‍सेसिव कम्‍पल्सिव डिस्‍आर्डर

के. संगीता

ऑब्‍सेसिव कम्‍पल्सिव डिस्‍आर्डर (ओसीडी) एक ऐसा एंग्‍जाएटी डिस्‍आर्डर है जिसमें लोग बार-बार जबरन दिमाग में आने वाले विचारों को अथवा एक ही काम अनेकों बार (सनक की हद तक) करने से खुद को रोक नहीं पाते हैं, जैसे कि बार-बार हाथ धोना या सफाई करना आदि। यूं तो कई लोगों के विचार अत्‍यंत केन्द्रित होते हैं या वे एक ही प्रकार का व्‍यवहार बार-बार भी कर सकते हैं परन्‍तु इससे उनके कार्यों में कोई बाधा नहीं आती बल्कि इससे उनके काम और भी आसान होते हैं। ओसीडी से ग्रसित लोगों के विचार स्‍थायी रूप से बने रहते हैं और अवांछित रूटीन और व्‍यवहार का पैटर्न उन्‍हें बुरी तरह से परेशान कर सकता है। जब वे अपनी सनक पूरी नहीं कर पाते तो वे बुरी तरह से डर जाते हैं या उन्‍हें भारी बेचैनी होने लगती है। ओसीडी से पीडि़त लोगों में से कुछ यह जानते हैं कि उनकी ये सनक बेकार है और कुछ ये समझते हैं कि ये सही है। ये जानते हुए भी कि उनकी सनक सही नहीं है, फिर भी अपनी सनक को काबू करना अथवा उन संवेदनाओं को रोक पाना उनको असंभव लगता है। ऐेसे व्‍यक्ति दरवाजों के हैंडल को छूने, पब्लिक टॉयलट का उपयोग करने और लोगों से हाथ मिलाने तक से कतराते हैं। इससे लोगों के रोजमर्रा के काम प्रभावित होते हैं और वे समाज में सही संपर्क भी नहीं बना पाते।

ओसीडी की शुरूआत बचपन, किशोरवय या युवावस्‍था के आरंभ में होती है। लगभग 19 वर्ष की आयु में इसके लक्षण दिखाई देने आरंभ होते हैं। पुरूषों की बजाय महिलाएं इससे ज्‍यादा प्रभावित होती हैं।

धुन सवार होना या सनक (ऑब्‍सेशन)

सनक ऐसे बार-बार आने वाले विचार, आग्रह या छवियां हैं जो तनाव या बेचैन करने वाली संवेदनाओं जैसे कि बेचैनी अथवा चिढ़ का कारण बनती हैं। अधिकतर ओसीडी ग्रसित व्‍यक्ति यह जानते हैं कि ये विचार, संवेदनाएं अथवा छवियां उनके दिमाग की उपज हैं और अकारण और अतार्किक हैं फिर भी वे इस प्रकार के विचारों को दिमाग से निकाल नहीं पाते। विशिष्‍ट ऑब्‍सेशंस में दूषित या नुकसान होने की चिन्‍ता, निश्‍चितता अथवा निषिद्द यौन संबंधी या धार्मिक विचार शामिल हो सकते हैं।    

बार-बार काम दोहराए जाने की विवशता

कम्‍पल्‍शन बार-बार दोहराए जाने वाले ऐसा व्‍यवहार या मानसिक कार्य को कहते हैं जो किसी व्‍यक्ति को सनक की हद तक प्रतिक्रिया करने पर बाध्‍य कर देते हैं। ऐसे में व्‍यक्ति न चाहते हुए भी खुद को एक ही काम बार-बार करने से रोक नहीं पाता है। गंभीर मामलों से ग्रस्‍त लोगों का रोजमर्रा का काम इतना ज्‍यादा प्रभावित होने लगता है कि वे अपना पूरा दिन इसी पर गुजार देते हैं। काम पूरा होने पर उन्‍हें क्षणिक राहत मिलती है पर जल्‍दी ही फिर से वही क्रम शुरू हो जाता है। इस कष्‍ट से उबरने का यही तरीका है कि यह जान लिया जाए कि ऐसी सनक बेबुनियाद है।

कम्‍पल्‍सन के कुछ उदाहरण

कीटाणुओं, धूल अथवा कोई ऐसा रसायन जो दूषित कर सकता है, के डर को दूर करने के लिए बार-बार हाथ धोना। ऐसा व्‍यक्ति दिन में कई बार कर सकता है और अपने आप को या अपनी वस्‍तुओं या घर को स्‍वच्‍छ रखने के लिए सफाई करने में घंटों बिता सकता है। यह जानते हुए भी कि सब कुछ साफ है, बीमारी से पी‍ड़‍ित व्‍यक्ति अपने-आप को नहीं रोक पाता।

दोहराना : बेचैनी को दूर करने के लिए एक ही काम को बार-बार दोहराना या एक ही तरह का व्‍यवहार बार-बार करना जैसे बार-बार दरवाजे बंद करना और खोलना, बार-बार विद्युत स्विचों को खोलना और बंद करना। हालांकि वे जानते है कि इन कामों से आपकी या किसी और की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होती, फिर भी वे ये धारणा बना लेते है कि अगर उन्‍होंने ऐसा नहीं किया तो किसी न किसी को जरूर नुकसान पहुंचेगा।

बार बार चेक करना: ऐसा व्‍यक्ति दूसरों के नुकसान का कारण न बनने या खुद को नुकसान से बचाए रखने के लिए करता है। जैसे बार-बार ताला खोलना और बंद करना, बार-बार गैस खोलना और बंद करना। कुछ स्थितियों में तो वाहन चालक वापस उसी रास्‍ते पर जाकर यह जांच करता है कि कहीं उससे कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई। ऐसा करके इनकी बेचैनी कम होती है।

चीजों को एक क्रम में व्‍यवस्थित करना: ऐसे लोगों के लिए उनकी सभी चीजों या घर की सभी चीजों को व्‍यवस्थित करने का विशेष क्रम होता है। इनकी पुस्‍तकें खास क्रम में या जगह पर भी रहती है उनके इधर-उधर होने से भी इनकी बेचैनी बढ़ती है।

मानसिक कंपल्‍शन: इसमें व्‍यक्ति के मस्तिष्‍क में अनेक विचार आते हैं जिससे वह अपने भविष्‍य को लेकर आशंकित रहता है। ऐसे व्‍यक्ति अपने मन में प्रार्थना करते रहते हैं या कोई वाक्‍य आदि बुदबुदाते रहते हैं।

निदान और उपचार

ओसीडी का पता लगाने में नीचे लिखे कदम मददगार हैं:

शारीरिक परीक्षण: यह जांच इस बात का पता लगाने के लिए की जाती है कि कहीं इन लक्षणों का कारण कोई अन्‍य शारीरिक रोग तो नहीं है।

लैब टैस्‍ट- इसमें उदाहरण के तौर पर रक्‍त की पूरी जांच (सीबीसी), थॉएराएड की जांच और शराब और अन्‍य ड्रग्‍स की जांच करना शामिल है।

मनोवैज्ञानिक मूल्‍यांकन: इसमें आपके विचार, भावनाएं, लक्षण और व्‍यवहार करने के तरीकों पर चर्चा की जाती है। यदि रोगी अनुमति दे तो उसके करीबी रिश्‍तेदारों और दोस्‍तों के साथ भी बातचीत की जाती है।

ओसीडी के निदान के मानक: इसके लिए डॉक्‍टर अमेरिकन साईकियाट्रिक एसोसिएशन द्वारा प्रकाशित स्‍टैटिस्टिकल मैन्‍युअल ऑफ मेंटल डिस्‍आर्डर (डीएसएम-5) के मानदण्‍डों के अनुसार कार्य कर सकता है।  

निदान में आने वाली कठिनाइयां

कभी-कभार ओसीडी का निदान करना कठिन हो जाता है क्‍योंकि इसके लक्षण ऑब्‍सेसिव-कंपल्सिव पर्सनैलिटी डिस्‍आर्डर, एंग्‍जाएंटी डिस्‍आर्डर, अवसाद, स्किजोफ्रेनिया अथवा अन्‍य मेंटल हेल्‍थ डिस्‍आर्डर के समान होते हैं। यह भी हो सकता है कि रोगी को ओएसडी और कोई अन्‍य मेंटल डिस्‍आर्डर दोनों हों।

उपचार

ओसीडी का कोई स्‍थाई इलाज नहीं है परन्‍तु इसके लक्षणों को नियंत्रण में रखा जा सकता है जिससे रोगी का रोजमर्रा का जीवन प्रभावित न हो। कुछ लोगों को सारी जिन्‍दगी उपचार की जरूरत होती है।

ओसीडी के दो प्रभावी उपचारों में साइकोथेरेपी और दवाइयां शामिल हैं। दोनों एक साथ दिया जाना रोगी के लिए अधिक फायदेमंद होता है।

साइकोथेरेपी

कॉग्‍निटिव बिहेविरियल थेरेपी (सीबीटी), साइकोथेरेपी का एक प्रकार जो अधिकांश लोगों के लिए लाभप्रद होता है। इसी के तहत आने वाली एक थेरेपी एक्‍सपोजर एंड रसिपांस प्रिवेंशन थेरेपी है जिसमें व्‍यक्ति को उसके भय की वस्‍तु अथवा उसकी सनक जैसे धूल आदि का धीरे-धीरे सामना करना सिखाया जाता है। इस थेरेपी में बहुत समय और प्रयास लगता है परन्‍तु एक बार अपनी सनक और संवेदनाओं को नियंत्रित करना सीखने पर जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है। यह थेरेपी व्‍यक्तिगत तौर पर परिवार के साथ और सामू‍हिक दोनों तरह से की जा सकती है।

दवाइयां

कुछ मनौवैज्ञानिक दवाएं ओसीडी को नियंत्रण में रखने में कारगार साबित हुई हैं। इसमें सबसे पहले एंटीडिप्रेसेंट दिए जाते हैं। फूड एंड ड्रग एडमिनिस्‍ट्रेशन (एफडीए) की सलाह के अनुसार दिए जाने वाले एंटीडिप्रेसेंट में व्‍यस्‍कों और 10 साल से अधिक आयु के बच्‍चों के लिए क्‍लोमीप्रमाईन दी जाती है। प्रोजैक जो व्‍यस्‍कों को और 7 साल से अधिक आयु के बच्‍चों को दी जाती है साथ ही फ्लूज़ेमाईन व्‍यस्‍कों और 8 साल से अधिक आयु के बच्‍चों की जाती है।

अन्‍य उपचार

कभी कभार दवाइयां और साइकोथेरेपी जैसी पारंपरिक उपचार ओएसडी के लक्षणों को नियंत्रित नहीं रख पाते तो ऐसे में डीप ब्रेन स्टिीम्यूलेशन (डीबीएस) का प्रयोग किया जाता है।

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